जब कभी मुड़ के – Jab Kabhi Mud Ke – Bhupinder Singh, Asha Bhosle
“जब कभी मुड़ के देखता हूँ मैं” गीत – फिल्म हिप हिप हुर्रे 1984 का एक अमर संगीत
परिचय
“जब कभी मुड़ के देखता हूँ मैं” 1984 की फिल्म ‘हिप हिप हुर्रे’ का एक बेहद मशहूर और दिल को छू लेने वाला गीत है। इस गीत को भूपिंदर सिंह और आशा भोंसले ने अपनी मधुर आवाज में गाया है, जबकि इसके बोल गुलज़ार ने लिखे हैं और संगीत वनराज भाटिया ने दिया है। यह गीत न केवल संगीत प्रेमियों के बीच बल्कि फिल्म प्रेमियों के बीच भी काफी लोकप्रिय है।
गीत का ऐतिहासिक संदर्भ
फिल्म ‘हिप हिप हुर्रे’ 1984 में रिलीज़ हुई थी और इस फिल्म ने अपने समय में काफी लोकप्रियता हासिल की। “जब कभी मुड़ के देखता हूँ मैं” गीत ने इस फिल्म की लोकप्रियता को और भी बढ़ा दिया।
गायक – भूपिंदर सिंह और आशा भोंसले
भूपिंदर सिंह: भूपिंदर सिंह भारतीय संगीत के एक प्रमुख गायक हैं। उनकी आवाज़ में एक अनोखी मिठास और गहराई है जो श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देती है। उन्होंने अपने करियर में कई हिट गाने गाए हैं और “जब कभी मुड़ के देखता हूँ मैं” उनमें से एक है।
आशा भोंसले: आशा भोंसले भारतीय सिनेमा की एक प्रमुख गायिका हैं। उनकी आवाज़ और गायकी ने भारतीय संगीत में एक अलग पहचान बनाई है। उन्होंने अपने करियर में कई हिट गाने गाए हैं और “जब कभी मुड़ के देखता हूँ मैं” उनमें से एक है।
गीतकार – गुलज़ार
गुलज़ार: गुलज़ार भारतीय सिनेमा के एक प्रसिद्ध गीतकार और लेखक हैं। उनकी लेखनी में एक अलग ही तरह की गहराई और भावनात्मक अभिव्यक्ति होती है। उन्होंने अपने शब्दों से इस गीत को और भी खास बना दिया है।
संगीतकार – वनराज भाटिया
वनराज भाटिया: वनराज भाटिया भारतीय सिनेमा के एक महान संगीतकार थे। उन्होंने अपने संगीत से कई गानों को अमर बना दिया है। उनकी संगीत शैली में एक अलग ही तरह की ताजगी और नवीनता होती थी।
गीत की संरचना और संगीत
इस गीत की रचना प्रक्रिया बहुत ही रोचक है। गुलज़ार के बोल, वनराज भाटिया का संगीत और भूपिंदर सिंह और आशा भोंसले की आवाज ने मिलकर इस गीत को एक अद्भुत रचना बना दिया है।
जब कभी मुड़ के – Jab Kabhi Mud Ke song Details
- Movie/Album: हिप हिप हुर्रे
- Year : 1984
- Music By: वनराज भाटिया
- Lyrics By: गुलज़ार
- Performed By: भूपिंदर सिंह, आशा भोंसले
जब कभी मुड़ के – Jab Kabhi Mud Ke Lyrics in Hindi
जब कभी मुड़ के देखता हूँ मैं
तुम भी कुछ अजनबी सी लगती हो
मै भी कुछ अजनबी सा लगता हूँ
जब कभी मुड़ के…
साथ ही साथ चलते चलते कहीं
हाथ छूटे मगर पता ही नहीं
आँसुओं से भरी सी आँखों में
डूबी डूबी हुई सी लगती हो
तुम बहुत अजनबी सी लगती हो
जब कभी मुड़ के…
हम जहाँ थे, वहाँ पे अब तो नहीं
पास रहने का भी सबब तो नहीं
कोइ नाराज़गी नहीं है मगर
फिर भी रूठी हुई सी लगती हो
तुम भी अब अजनबी सी लगती हो
जब कभी मुड़ के…
रात उदास नज़्म लगती है
ज़िन्दगी से रस्म लगती है
एक बीते हुए से रिश्ते की
एक बीती घड़ी से लगते हो
तुम भी अब अजनबी से लगते हो
जब कभी मुड़ के…