उदास शाम किसी ख्वाब – Udaas Shaam Kisi Khwaab – Ghulam Ali
उदास शाम किसी ख्वाब…
ग़ज़ल की बात हो और गुलाम अली साहब का ज़िक्र न हो, ऐसा हो ही नहीं सकता। गुलाम अली, जिन्हें ग़ज़ल गायकी का बादशाह कहा जाता है, उन्होंने अपनी मधुर आवाज़ से इस कला को एक नया आयाम दिया है। उनकी ग़ज़लों में जो दर्द, जो गहराई होती है, वो सीधे दिल में उतर जाती है। और जब बात करें “उदास शाम किसी ख्वाब” ग़ज़ल की, तो इसका श्रेय जाता है गुलाम अली साहब और मशहूर शायर क़तील शिफ़ाई को।
शायर की कलम से निकले शब्द…
क़तील शिफ़ाई, जो उर्दू शायरी के दिग्गज शायर माने जाते हैं, उन्होंने “उदास शाम किसी ख्वाब” इस ग़ज़ल के बोल लिखे हैं। उनके शब्दों में वो जादू है, जो सीधे दिल की गहराइयों को छू लेता है। उनकी शायरी में प्रेम, विरह, और दर्द की वो मिठास होती है, जो सुनने वाले को अपने आगोश में ले लेती है।
गुलाम अली की आवाज़ का जादू…
“उदास शाम किसी ख्वाब” इस ग़ज़ल को गुलाम अली ने अपनी मधुर आवाज़ से सजाया है। उनकी गायकी में जो दर्द और भावनाओं की गहराई है, वो सुनने वाले को कहीं खो जाने पर मजबूर कर देती है। गुलाम अली की आवाज़ में जो खनक और मिठास है, वो इस ग़ज़ल को और भी खास बना देती है।
संगीत की मिठास…
“उदास शाम किसी ख्वाब” इस ग़ज़ल का संगीत भी गुलाम अली ने खुद तैयार किया है। उनके संगीत में जो सूफ़ियत और गहराई है, वो इस ग़ज़ल को और भी खास बना देती है। संगीत का हर सुर और हर ताल दिल को छूने वाला होता है, जो ग़ज़ल के शब्दों को और भी प्रभावी बना देता है।
समाप्ति पर…
गुलाम अली की ग़ज़लें सिर्फ सुनी नहीं जातीं, उन्हें महसूस किया जाता है। “उदास शाम किसी ख्वाब” ग़ज़ल भी उन्हीं ग़ज़लों में से एक है, जिसे सुनकर दिल और आत्मा दोनों में एक अलग सी सुकून और दर्द का एहसास होता है।
क्या आपने “उदास शाम किसी ख्वाब” इस ग़ज़ल को सुना है? अगर नहीं, तो आज ही सुनिए और गुलाम अली की इस मधुर ग़ज़ल के जादू में खो जाइए।
उदास शाम किसी ख्वाब
उदास शाम किसी ख्वाब – Udaas Shaam Kisi Khwaab Song Details
- Movie/Album: महताब
- Year : 1991
- Music By: गुलाम अली
- Lyrics By: क़तील शिफ़ई
- Performed By: गुलाम अली
उदास शाम किसी ख्वाब – Udaas Shaam Kisi Khwaab Lyrics in Hindi
उदास शाम किसी ख्वाब में ढली तो है
यही बहुत है के ताज़ा हवा चली तो है
जो अपनी शाख़ से बाहर अभी नहीं आई
नई बहार की ज़ामिन वही कली तो है
उदास शाम किसी…
धुंआ तो झूठ नहीं बोलता कभी यारों
हमारे शहर में बस्ती कोई जली तो है
उदास शाम किसी…
किसी के इश्क़ में हम जान से गये लेकिन
हमारे नाम से रस्म-ए-वफ़ा चली तो है
उदास शाम किसी…
हज़ार बन्द हो दैर-ओ-हरम के दरवाज़े
मेरे लिये मेरे महबूब की गली तो है
उदास शाम किसी…