हुज़ूर इस कदर

हुज़ूर इस कदर – Huzoor Is Kadar -Bhupinder Singh & Suresh Wadkar

परिचय

हुज़ूर इस कदर” फिल्म मासूम का एक प्रमुख गीत है। यह गीत अपनी मधुर धुन और भावपूर्ण बोलों के कारण आज भी लोगों के दिलों में बसा हुआ है। राहुल देव बर्मन का संगीत और गुलज़ार के लिखे बोल इस गीत को अद्वितीय बनाते हैं।

संगीतकार राहुल देव बर्मन का योगदान

राहुल देव बर्मन, जिन्हें प्यार से “पंचम दा” कहा जाता है, भारतीय फिल्म संगीत में एक महान व्यक्तित्व हैं। उन्होंने अपने करियर में अनेक यादगार गीत दिए हैं और मासूम फिल्म में भी उनका संगीत अमिट छाप छोड़ता है।

गीतकार गुलज़ार का जादू

गुलज़ार साहब के शब्दों का जादू किसी से छुपा नहीं है। उनकी कविताओं में एक अद्भुत गहराई होती है। “हुज़ूर इस कदर” के बोलों में उनकी विशेष शैली और संवेदनशीलता स्पष्ट झलकती है, जो इस गीत को और भी विशेष बनाती है।

गायकों का परिचय

इस गीत को गाया है भूपिंदर सिंह और सुरेश वाडकर ने। उनकी गायन शैली और आवाज़ का जादू इस गीत को और भी मधुर बनाता है। उनकी आवाज़ में एक खास मिठास और गहराई है जो गीत के भावों को और भी उभारती है।

गीत का फिल्म में प्रयोग

“हुज़ूर इस कदर” फिल्म के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर आता है। यह गीत न केवल फिल्म की कहानी को आगे बढ़ाता है बल्कि दर्शकों को भावनात्मक रूप से जोड़ता भी है।

गीत की लोकप्रियता और विरासत

यह गीत आज भी उतना ही लोकप्रिय है जितना अपनी रिलीज़ के समय था। इसके बोल और संगीत आज भी लोगों की ज़ुबान पर रहते हैं और यह गीत रेडियो और टीवी पर नियमित रूप से बजता है।

गीत के संगीत संयोजन

इस गीत का संगीत संयोजन अद्वितीय है। बर्मन साहब ने इस गीत में विभिन्न वाद्ययंत्रों का उपयोग किया है, जो इसे और भी विशेष बनाता है। गीत की धुन सुनने वालों को एक अलग ही दुनिया में ले जाती है।

गीत का सांस्कृतिक प्रभाव

“हुज़ूर इस कदर” का समाज पर गहरा प्रभाव पड़ा है। इस गीत ने न केवल संगीत प्रेमियों को बल्कि आम जन को भी प्रभावित किया है। इस गीत का उपयोग अन्य मीडिया जैसे टीवी शो और विज्ञापनों में भी किया गया है।

हुज़ूर इस कदर

हुज़ूर इस कदर

हुज़ूर इस कदर – Huzoor Is Kadar Song Details

  • Movie/Album: मासूम
  • Year : 1983
  • Music By: राहुल देव बर्मन
  • Lyrics By: गुलज़ार
  • Performed By: भूपिंदर सिंह, सुरेश वाडकर

हुज़ूर इस कदर – Huzoor Is Kadar Lyrics in Hindi

हुज़ूर इस कदर भी न इतरा के चलिये
खुले आम आँचल न लहरा के चलिये
हुज़ूर इस कदर…

कोई मनचला गर पकड़ लेगा आँचल
ज़रा सोचिये आप क्या कीजिएगा
लगा दें अगर बढ़ के ज़ुल्फ़ों में कलियाँ
तो क्या अपनी ज़ुल्फ़ें झटक दीजिएगा
हुज़ूर इस कदर…

बहुत दिलनशीं हैं हँसी की ये लड़ियाँ
ये मोती मगर यूँ ना बिखराया कीजे
उड़ाकर न ले जाये झोंका हवा का
लचकता बदन यूँ ना लहराया कीजे
हुज़ूर इस कदर…

बहुत खूबसूरत है हर बात लेकिन
अगर दिल भी होता तो क्या बात होती
लिखी जाती फिर दास्तान-ए-मुहब्बत
एक अफ़साने जैसे मुलाक़ात होती
हुज़ूर इस कदर…

https://youtu.be/9EWXFTxllEo?si=mhxLGclx-q3s3Joh

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